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कर्ण पिशाचिनी साधना: विधि, लाभ, और साधक की अनुभूतियां

कर्ण पिशाचिनी साधना के लिए किसी नदी या तट पर एकांत स्थान में पवित्रता पूर्वक एकाग्रचित्त इस मंत्र का जाप 10000 बार जाप कर ले और उसके बाद ग्वार-पाठे के लछे को दोनों हाथ हथेलियों पर रगड़ कर रात को शयन करने से यह देवी स्वप्न में समय का शुभाशुभ फल साधक को बतला जाती है ।

ओम क्रीं ह्रीं चिचि पिशाचिनी स्वाहा ।

इस मंत्र का जाप एकांत स्थान पर बैठ कर 10000 बार मंत्र जाप करके आक की लकड़ी , घी और सहद का हवन करे तो कालकर्णिका देवी प्रसन्न होकर भक्त को रत्न , धन आदि प्रदान करती है।

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कर्ण पिशाचिनी साधना

कर्ण पिशाचिनी साधना एक अद्वैत साधना है जो आध्यात्मिक विकास और आनंद के प्राप्ति के लिए उपयोगी होती है। यह साधना आपको कर्ण पिशाचिनी की शक्तियों के साथ संयोग करके आपके अन्तरंग शक्तियों को जागृत करने की क्षमता प्रदान करती है। यह साधना मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि को स्थापित करने में मदद करती है और आपको साध्य स्थिति के प्रतीक बनने में सहायता प्रदान करती है।

चंडिका मंत्र

ओं चण्डिके हसः क्रीं क्रीं क्रीं क्लीं स्वाहा ।

इस मन्त्र को शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जपना प्रारम्भ करके Purnmashi तक नित्य चन्द्रोदय से चन्द्रास्त तक सम्पूर्ण पक्ष में 900000 बार जाप करने से अन्तिम दिन देवी प्रत्यक्ष होकर साधक को अमृत प्रदान करती हैं, जिसको पान करने से साधक मृत्युभय से मुक्त हो जाता है ।

कर्ण पिशाचिनी विधि |Karna Pishachini Vidhi

पहली विधि: इस विधि के लिए ग्वारपाठे को अभिमंत्रित करके गूदे को हाथ और पैरों पर लेप लगाया जाता है। यह विधि इक्कीश दिनों का है और रोजाना पांच हज़ार बार मंत्र जाप किया जाता है इक्कीश दिनों में सिद्धि के बाद कान में पिशाचिनी की आवाज स्पष्ट सुनी जा सकती है।

कर्ण पिशाचिनी दूसरी विधि: यह विधि भी पहली विधि की तरह है इसमें दिए गए मंत्र का प्रतिदिन 5000 हजार जाप काले ग्वारपाठे को सामने रखकर करते हुए 21 दिनों तक सिद्धि की साधना पूर्ण की जाती है।